भारतीय न्याय संहिता की धारा 103 हत्या (Murder) के अपराध को परिभाषित करती है, जिसमें बताया गया है कि यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर (Intentionally) किसी अन्य व्यक्ति को जान से मारने के लिए हमला करता है। व उस हमले से सामने वाले व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो वह हत्या कहलाती है। इसलिए जो कोई भी किसी व्यक्ति की हत्या करता है उस पर अब बीएनएस की धारा 103 के तहत कार्यवाही की जाती है।
NOTE:- कुछ समय पहले तक हत्या के मामलों में IPC Section 302 (पुराना कानून) लागू होती थी, लेकिन बीएनएस के लागू होने के बाद से अब भविष्य में हत्या के सभी मामलों को BNS Section 103 के दर्ज कर कार्यवाही की जाएगी।
हत्या के अपराध को समझने के लिए आवश्यक मुख्य बातें
- जान-बूझकर हत्या: इसमें यह देखा जाता है कि हत्या करने वाले व्यक्ति का इरादा पहले से ही किसी को जान से मारने का था।
- गैर-कानूनी तरीका: हत्या का कार्य गैर-कानूनी (illegal) होना चाहिए, यानी कि किसी वैध कारण (Valid Reason) के बिना और कानून के खिलाफ जाकर किया गया हो।
धारा 103 (1) के तहत हत्या के अपराध की सजा – Punishment Of BNS 103 in Hindi
भारतीय न्याय संहिता की धारा 103 हत्या के अपराध के लिए कठोर दंड निर्धारित करती है। हत्या जैसा गंभीर अपराध करने के दोषी व्यक्ति को दो प्रकार से दंडित किया जा सकता है:-
मृत्यु दंड: भारतीय कानून के अनुसार मृत्यु दंड (Death penalty) को सबसे कठोर दंड माना जाता है और विशेष रूप से जघन्य (Heinous) माने जाने वाले मामलों में ही दोषी (Guilty) व्यक्ति को दिया जाता है। ज्यादा क्रूरता, भाड़े पर हत्या, या जाति, धर्म, आदि के आधार पर हत्या जैसे मामलों में मृत्युदंड देने की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है।
आजीवन कारावास: इस सजा में व्यक्ति को अपना शेष यानी बचा हुआ जीवन जेल में ही बिताना पड़ता है। यह दंड अकसर तब लगाया जाता है जब हत्या के अपराध में मृत्युदंड को उचित ठहराने वाली बातों या सबूतों (Evidences) की कमी पाई जाती है। इसके साथ ही, BNS Section 103 कारावास की सजा के साथ-साथ जुर्माना लगाने की अनुमति भी देती है।
बीएनएस धारा 103 के तहत हत्या के अपराध का उदाहरण
एक गांव में राजू नाम का एक बहुत ही शांत स्वभाव का इंसान रहता था। राजू अपनी पत्नी राधा और अपने छोटे बेटे के साथ वहाँ रहता था। उनके जीवन में सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन एक शाम ने सब कुछ बदल दिया। राजू का पड़ोसी श्याम एक गुस्सैल स्वभाव का व्यक्ति था। कई हफ़्तों से वह एक छोटे से ज़मीन विवाद को लेकर राजू से नाराज़ था।
एक रात गुस्से में श्याम ने राजू से लड़ाई करने का फैसला किया। जिसके बाद वो चाकू लेकर राजू के घर में घुस गया और उसके साथ बहस करने लगा। बहस जल्दी ही इतनी बढ़ गई, कि गुस्से में श्याम ने राजू को चाकू मार दिया। जिससे राजू बेजान होकर ज़मीन पर गिर पड़ा, और वही पर उसकी मौत हो गई।
जब ग्रामीणों को पता चला, तो पुलिस को बुलाया गया। जिसके बाद पुलिस ने आते ही श्याम को राजू की हत्या करने के अपराध में बीएनएस की धारा 103 के तहत गिरफ्तार कर लिया।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 103 की उपधारा 2 क्या है
भेदभावपूर्ण इरादे से भीड़ द्वारा हत्या 103 (2) (lynching with discriminatory intent)
बीएनएस की धारा 103 की उपधारा 2 (Sub Section2) में बताया गया है कि जब पाँच लोग या उससे अधिक समूह (Group) के लोग किसी व्यक्ति की हत्या करने में एक साथ मिलकर काम को करते है, तो यह धारा उन सभी व्यक्तियों पर समान रुप से लागू होती है।
हत्या की धारा 103 (2) के मुख्य बिन्दु
- पाँच या अधिक लोगों का समूह: यह उपधारा विशेष रूप से उन स्थितियों पर लागू होती है जहाँ पाँच या अधिक लोगों का समूह एक साथ काम करता है।
- एक साथ काम करना: समूह के सभी सदस्यों का लक्ष्य किसी एक व्यक्ति को जान से मारने का होना चाहिए।
- भेदभावपूर्ण आधार पर हत्या: हत्या नस्ल, जाति, धर्म, लिंग, जन्मस्थान, भाषा या इसी तरह के आधार पर होनी चाहिए।
बीएनएस सेक्शन 103(2) के तहत सजा क्या है
धारा 103 की उपधारा 2 में सजा के लिए बताया गया है कि यदि किसी व्यक्ति की हत्या में पाँच या कोई समूह के लोग शामिल होते है, तो उस समूह के प्रत्येक सदस्य को जुर्माने (Fine) के साथ-साथ मौत या आजीवन कारावास (life imprisonment) तक की सजा (Punishment) दी जा सकती है। आइये इसे एक उदाहरण द्वारा समझने का प्रयास करते है।
उदाहरण :- मान लीजिए प्रदीप नाम के एक व्यक्ति को मारने के लिए 5 लोग एक साथ तैयारी करते है। एक दिन वे 5 लोग मिलकर प्रदीप को पकड़ लेते है, और उनमें एक व्यक्ति प्रदीप को चाकू मार देता है। जिसके बाद प्रदीप की वही पर मृत्यु हो जाती है। कुछ दिनों बाद पुलिस उन सभी लोगों को गिरफ्तार कर लेती है। जिसके बाद न्यायालय द्वारा उन सभी 5 लोगों को उम्रकैद की सजा दे दी जाती है, इसमें ध्यान रखने योग्य बात यह है कि भले ही प्रदीप को चाकू एक ही व्यक्ति ने मारा था। लेकिन प्रदीप की हत्या की योजना सभी की थी।
BNS Section 103 (1) & (2) में जमानत कैसे मिलती है
बीएनएस की धारा 103 के अनुसार हत्या के मामलों में जमानत (Bail) देना एक बेहद संवेदनशील (Sensitive) मामला है। किसी भी व्यक्ति को जान से मार देना एक जघन्य अपराध (Heinous offence) होता है, इसी कारण यह एक संज्ञेय श्रेणी (Cognizable) का अपराध कहलाता है। हत्या जैसे अपराध की गंभीरता को देखते हुए ही सेक्शन 103 को गैर-जमानती (Non-bailable) रखा गया है। इसलिए यदि किसी व्यक्ति को हत्या के अपराध के लिए गिरफ्तार किया जाता है, तो उसे जमानत मिलना बहुत ही मुश्किल हो जाता है।
लेकिन न्यायालय के पास कुछ असाधारण परिस्थितियों में जमानत देने का विवेक है, आइये जानते है वे स्थिति कौन सी है:-
- साक्ष्य की ताकत: यदि अभियुक्त (Accused) के खिलाफ अभियोजन पक्ष (Prosecutors) का मामला कमजोर लगता है, तो जमानत पर विचार किया जा सकता है। जैसे:- सबूतों की कमी, गलत जानकारी प्राप्त होना, आदि।
- भागने का जोखिम: जमानत पर रहते हुए अभियुक्त के फरार होने की संभावना एक बड़ी चिंता का विषय है। इसलिए यदि न्यायालय को लगता है कि आरोपी व्यक्ति जमानत के बाद कही भागेगा नहीं तो कुछ विशेष स्थितियों में जमानत मिलने की उम्मीद हो सकती है।
- सार्वजनिक हित: न्यायालय सार्वजनिक सुरक्षा (Public Security) को प्राथमिकता (Priority) दे सकता है और यदि अभियुक्त को रिहा करने से खतरा पैदा होता है तो जमानत देने से इनकार कर सकता है।
हत्या के अपराध से जुडी अन्य धाराएं:
- गैर इरादतन हत्या (BNS 105)
- लापरवाही से मौत (BNS 106)
- हत्या का प्रयास (BNS 109)
- स्वेच्छा से गंभीर चोट पहुंचाना (BNS 117)
- गलत तरीके से रोकना (BNS 126)
- अपहरण (BNS 137)
भारत में हत्या के अपराध को न्यायालय में साबित करने के लिए मुख्य बिंदु
- मृत्यु का प्रमाण: मृत व्यक्ति का शव और उसके मृत्यु का प्रमाण (Death Certificate) होना आवश्यक है। बिना शव (Dead Body) के इस जुर्म को साबित करना बहुत कठिन होता है।
- मृत्यु का कारण: पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के माध्यम से यह पता लगाना कि मृत व्यक्ति की मृत्यु कैसे हुई, जैसे कि गोली मारना, चाकू मारना, जहर देना, आदि।
- हत्या का कारण: यह साबित करना कि आरोपी के पास हत्या करने का कोई कारण था, जैसे कि बदला, पैसे की लालच, व्यक्तिगत दुश्मनी, आदि।
- मौका और समय: आरोपी का घटना के समय और स्थान पर मौजूद होना, इसे साबित करने के लिए गवाहों और तकनीकी प्रमाणों (Technical Evidences) का सहारा लिया जाता है।
- गवाहों के बयान: चश्मदीद गवाहों (Eye witnesses) के बयान जो घटना के समय वहां मौजूद थे और जिन्होंने अपराध को देखा।
- डीएनए और फॉरेंसिक साक्ष्य: डीएनए, फिंगरप्रिंट, खून के धब्बे, बाल, और अन्य फॉरेंसिक साक्ष्य जो आरोपी को अपराध स्थल से जोड़ सकते हैं।
- अपराध स्थल की जाँच: अपराध स्थल की जाँच से प्राप्त हुए साक्ष्य, जैसे कि हथियार, खून के धब्बे, और अन्य सुराग जो अपराध को साबित करने में मदद करते हैं।
- इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य: मोबाइल फोन रिकॉर्ड, सीसीटीवी फुटेज, ईमेल, और सोशल मीडिया संदेश जो आरोपी के अपराध में शामिल होने को दर्शाता है।
- आरोपी का बयान: आरोपी द्वारा दिया गया बयान और अगर उसने अपराध को स्वीकार किया हो, तो उसका रिकॉर्ड।
- पहले के आपराधिक रिकॉर्ड :- आरोपी का पहले का कोई आपराधिक रिकॉर्ड होना, जिससे यह साबित हो सके कि आरोपी पहले भी किसी अपराध में शामिल रहा है।