भारतीय न्याय संहिता की धारा 115 में स्वेच्छा से चोट पहुंचाने (voluntarily causing hurt) के अपराध के बारे में बताया गया है। स्वेच्छा से चोट (Injury) पहुंचाने का अर्थ होता है, खुद की इच्छा से किसी व्यक्ति को चोट पहुंचाना। धारा 115 को मुख्य रुप से दो उपधाराओं (Sub Sections) में बाँटा गया है, धारा 115( 1) व धारा 115 (2)। आइये इससे जुड़ी सभी जानकारियों को विस्तार से समझते है।
BNS Section 115 (1) – स्वेच्छा से चोट पहुँचाने की परिभाषा
बीएनएस की धारा 115(1) में स्वेच्छा से चोट पहुँचाने के अपराध को परिभाषित किया गया है। जिसमें बताया गया है कि यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को चोट पहुँचाने के इरादे (Intention) से कोई ऐसा कार्य करता है। यह जानते हुए की उसके द्वारा किए गए कार्य करने से सामने वाले व्यक्ति को चोट लग सकती है। ऐसे कार्य को स्वेच्छा से चोट पहुंचाने का अपराध माना जाता है, और उस व्यक्ति पर कानूनी कार्यवाही की जा सकती है।
BNS Section 115 (2) – स्वेच्छा से चोट पहुँचाने के अपराध के लिए सजा
बीएनएस की धारा 115(2) में बताया गया है कि यदि कोई व्यक्ति यह जानते हुए भी कि उसके द्वारा किए गए कार्य से किसी अन्य व्यक्ति को चोट पहुँच सकती है। ऐसा अपराध करेगा तो उस व्यक्ति को भारतीय न्याय संहिता की धारा 115 (2) के तहत दंडित किया जाएगा। इस अपराध में कितनी सजा मिलती है इसके बारे में हम इसी लेख में आगे जानेंगे।
बीएनएस सेक्शन 115 लगने के मुख्य बिंदु
- इरादा या ज्ञान (Intention or knowledge):- इसमें आरोपी व्यक्ति (Accused Person) का किसी दूसरे व्यक्ति को चोट पहुंचाने का इरादा होना चाहिए या इसे बात की जानकारी होनी चाहिए कि उसके द्वारा किए गए कार्य से दूसरे व्यक्ति को चोट लगने की पूरी संभावना है।
- चोट पहुँचाने वाला कार्य (Act Causing injury):- आरोपी द्वारा कोई ऐसा कार्य किया जाना चाहिए जिसके परिणामस्वरूप सामने वाले व्यक्ति को सीधा चोट पहुँची हो। जैसे किसी को धक्का देना, आदि।
कुछ ऐसे कार्य जो BNS 115 के तहत अपराध माने जा सकते है:-
- किसी को थप्पड़ मारना या मुक्का मारना।
- किसी को लात मारना या ठोकर मारना, जिससे वह गिर जाए और उस व्यक्ति को चोट लग जाए।
- किसी को जानबूझकर धक्का देना।
- किसी व्यक्ति पर कोई सामान या वस्तु फेंक देना।
- जानबूझकर किसी व्यक्ति के हाथ या अन्य अंग (Body Part) को जोर से पकड़कर परेशान करना।
- जानबूझकर किसी को चौंकाने या डराने के लिए तेज आवाज करना, जिसे सामने वाले व्यक्ति को अचानक से नुकसान पहुंचे।
इसके अलावा भी बहुत सारे ऐसे कार्य हो सकते है, जिनको आप करते है तो वह सेक्शन 115 के तहत अपराध माने जाएंगे।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 115 के जुर्म का उदाहरण:-
प्रदीप और साहिल नाम के दो लड़के क्रिकेट के बहुत अच्छे खिलाड़ी होते है। एक दिन प्रदीप रोजाना की तरह मैदान में खेलने के लिए जाता है। उसी समय साहिल भी वही आ जाता है, और प्रदीप के साथ खेलने लग जाता है। खेलते-खेलते साहिल गेंद को जानबूझकर एक ऐसी जगह फेंक देता है, जहाँ पर आसानी से ना दिखाई देने वाले गड्डा होता है।
साहिल को इस बात की जानकारी होती है कि वहाँ गड्डा है। जब प्रदीप बाल लेने वहाँ जाता है, तो उस गड्डे में गिर जाता है। जिसकी वजह से उसे चोट लग जाती है, इस मामले में यह साबित होता है कि साहिल ने प्रदीप को जानबूझकर (Intentionally) वहाँ भेजा जिससे उसे चोट लगी। इसलिए इस अपराध के लिए साहिल के खिलाफ BNS Section 115 के तहत कार्यवाही की जा सकती है।
बीएनएस धारा 115 के अपराध की सजा (Punishment)
बीएनएस की धारा 115 में उपधारा (2) दण्ड (Punishment) निर्धारित करती है। जिसमें बताया गया है कि, जो कोई भी व्यक्ति धारा 120 की उपधारा(1) में दिए अपराध को छोड़कर स्वेच्छा से चोट पहुँचाने के अपराध का दोषी (Guilty) पाया जाता है। उस दोषी व्यक्ति को एक अवधि की कारावास (Imprisonment) जिसे एक वर्ष तक की सजा में बढ़ाया जा सकता है, की सजा से दंडित किया जाएगा। इसके साथ ही दोषी व्यक्ति को दस हजार रुपये तक के जुर्माने (Fine) से भी दंडित किया जा सकता है।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 115 में जमानत कैसे व कब मिलती है
बीएनएस की धारा 115 के तहत आने वाला यह अपराध एक गैर-संज्ञेय (Non-Cognizable) अपराध होता है, जिसे गंभीर अपराधों की श्रेणी से अलग रखा गया है। इसके साथ ही यह अपराध जमानती (Bailable) भी होता है, जिसका मतलब है कि इस मामले में आरोपित व्यक्ति को जमानत आसानी से मिल जाती है।
इस सेक्शन से संबधित अन्य धाराएँ
BNS 117 (गंभीर चोट पहुंचाना) | BNS 118 (खतरनाक हथियार से चोट) |
BNS 109 (हत्या का प्रयास) | BNS 103 (हत्या करना) |
BNS 137 (अपहरण करना) | BNS 61 (आपराधिक षड्यंत्र) |
बीएनएस धारा 115 में बचाव कैसे किया जा सकता है।
यदि किसी व्यक्ति पर BNS 115 के अपराध के लिए कार्यवाही की जाती है, तो उस व्यक्ति के लिए इसी कानून के अंदर बचाव के कुछ आवश्यक उपाय दिए गए है, जिन बचाव उपायों की जानकारी आपको होना बहुत जरुरी है। इस अपराध के तहत कुछ ऐसी परिस्थितियाँ हैं जहाँ चोट पहुँचाना वैध (Valid) माना जा सकता है और आप पर किसी भी प्रकार की कार्यवाही भी नहीं की जाएगी।
- आप खुद को बेगुनाह (Innocent) साबित करने के लिए यह साबित कर सकते है कि आपका इरादा किसी व्यक्ति को चोट पहुँचाने का नहीं था या आपको नहीं पता था कि आपके कार्यों से चोट लगने की संभावना है। जैसे – अंजाने में किसी को चोट लग जाना।
- यदि आप खुद को या किसी और को नुकसान पहुँचाने से बचाने के लिए आत्मरक्षा (Self Defence) में सामने वाले व्यक्ति को चोट पहुँचाते है तो वह खुद की सुरक्षा में माना जाएगा।
- किसी व्यक्ति ने पहले आपका बहुत अपमान (Insult) किया और आपको उकसाया (Provoke) जिसके कारण आपने उन्हें चोट पहुँचाई।
- कोई ऐसा कार्य किया गया हो जिसमें चोट लगने वाले व्यक्ति की खुद की सहमति भी थी। (हालाँकि, गंभीर चोटों के लिए सहमति मान्य नहीं होगी) यानी उस व्यक्ति ने अपनी इच्छा से ऐसा कार्य किया जिसके कारण उसे चोट लगी। इसमें आप की कोई गलती नहीं मानी जाएगी।
इसके अलावा आप खुद के बचाव के लिए मौके पर मौजूद लोगों की गवाही या सबूतों की सहायता ले सकते है। यदि फिर भी आपको किसी भी प्रकार की समस्या आती है, तो आप अपने बचाव के लिए एक अच्छे वकील की सहायता ले सकते है। जो ऐसे मामलों से आपको बचाने के लिए अच्छे से आपके केस को समझेगा व आपको निर्दोष साबित करने के लिए न्यायालय में आपके केस की पैरवी भी करेगा।